नीलाचल की पहाड़ियों पर चढ़ते ही एक अजीब सा कंपन आत्मा को छूता है। हवा में धूप और चंदन की महक, घंटियों की टुनक और हर भक्त के होंठों पर “जय माँ कामाख्या” का स्वर – ये सब मिलकर ऐसा वातावरण रचते हैं, मानो पूरा ब्रह्मांड माँ के चरणों में झुक गया हो। माँ कामाख्या का यह धाम सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि शक्ति, रहस्य और भक्ति का अद्वितीय संगम है।
कहा जाता है कि यह स्थान सृष्टि की शक्ति का सबसे जीवंत प्रतीक है। यहाँ आकर लगता है कि धरती, आकाश, नदी, पर्वत – सब मिलकर माँ की उपस्थिति का बखान कर रहे हैं।
माँ कामाख्या की कथा
हिंदू पुराणों के अनुसार, जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अग्नि में आत्मदाह किया, तो भगवान शिव उनके वियोग में व्याकुल होकर पृथ्वी पर घूमते रहे। उस समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया, ताकि शिव का दुख समाप्त हो सके। जहाँ-जहाँ उनके अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ बने।
गुवाहाटी की नीलाचल पहाड़ियों पर माता सती का योनि अंग गिरा था। इसी कारण यहाँ की उपासना स्त्री-शक्ति और सृजन का प्रतीक मानी जाती है। यह स्थान न केवल शक्ति का धाम है, बल्कि जीवन की अनवरत धारा का प्रतीक भी है।
मंदिर का स्वरूप और गर्भगृह का रहस्य
कामाख्या मंदिर का वास्तुशिल्प अद्भुत है। लाल रंग के पत्थरों से बना इसका शिखर दूर से ही आँखों को ठहरने पर मजबूर कर देता है। मंदिर के बाहर की दीवारों पर देवी-देवताओं की अद्भुत आकृतियाँ उकेरी गई हैं, जो मानो भक्तों को निहारती हों।
सबसे रहस्यमय इसका गर्भगृह है। यहाँ कोई प्रतिमा नहीं है। इसके स्थान पर एक प्राकृतिक शिला है, जो योनि का प्रतीक है। उस शिला पर सदैव भूमिगत झरने का जल बहता रहता है। यह जल मानो माँ की श्वास है, जो हर पल धरती को जीवन देती रहती है। जब भक्त उस शिला पर जल और पुष्प अर्पित करते हैं, तो लगता है जैसे सीधे माँ के हृदय में अपनी भक्ति समर्पित कर रहे हों।
अंबुबाची मेला – स्त्री शक्ति का उत्सव
हर वर्ष जून के महीने में यहाँ अंबुबाची मेला लगता है। मान्यता है कि इन तीन दिनों तक माँ स्वयं अपने मासिक धर्म से गुजरती हैं और मंदिर के द्वार बंद रहते हैं। चौथे दिन जब द्वार खुलते हैं, तो श्रद्धालुओं का सागर उमड़ पड़ता है।
यह पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि स्त्री की सृजन शक्ति और उसके सम्मान का प्रतीक है। देश-विदेश से साधु, तांत्रिक और भक्त इस समय कामाख्या पहुँचते हैं। पूरा गुवाहाटी नगरी उस दौरान शक्ति के उत्सव में बदल जाती है।
तांत्रिक साधना का केंद्र
माँ कामाख्या का धाम भारत में तांत्रिक साधना के लिए भी प्रसिद्ध है। माना जाता है कि यहाँ साधना करने से अद्भुत सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। रात के समय मंदिर परिसर में बैठकर साधक जब जप करते हैं, तो लगता है जैसे पूरा वातावरण गूंज रहा हो।
कुछ भक्तों का अनुभव है कि यहाँ ध्यान में बैठते ही एक तीव्र ऊर्जा शरीर को घेर लेती है। मानो माँ स्वयं अपनी उपस्थिति का आभास कराती हों।
नीलाचल पहाड़ियों और ब्रह्मपुत्र का संगम
कामाख्या मंदिर का प्राकृतिक वातावरण भी इसे अनूठा बनाता है। नीलाचल की हरी पहाड़ियाँ मंदिर को अपनी गोद में समेटे हुए हैं, और नीचे बहती ब्रह्मपुत्र नदी इस धाम को और भी पवित्र बना देती है।
संध्या के समय जब सूर्य की अंतिम किरणें मंदिर के शिखर को छूती हैं और ब्रह्मपुत्र की लहरें सुनहरी आभा में नाचती हैं, तो दृश्य अलौकिक लगता है। ऐसा लगता है कि स्वयं देवगण आकर माँ की आरती कर रहे हों।
भक्तों के अनुभव
भक्तों का कहना है कि माँ कामाख्या से माँगना नहीं पड़ता। जो भी सच्चे मन से यहाँ आता है, माँ उसकी पुकार सुन लेती हैं। कितनों ने संतान की चाह में प्रार्थना की और माँ ने उन्हें आशीर्वाद दिया। कितनों ने जीवन की कठिनाइयों से घबराकर यहाँ शरण ली और समाधान पाया।
कहते हैं, जो एक बार माँ कामाख्या के धाम में आ गया, उसका जीवन पहले जैसा नहीं रहता। माँ का आशीर्वाद उसके साथ जीवन भर चलता है।
एक भक्त की आँखों से
यदि कोई पूछे कि कामाख्या में क्या विशेष है, तो उत्तर शब्दों में नहीं दिया जा सकता। इसे तो केवल अनुभव किया जा सकता है। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते समय जो रोमांच, गर्भगृह में झुकते समय जो शांति, और माँ की शिला को निहारते समय जो ऊर्जा मिलती है — वह हर भक्त के जीवन की सबसे अमूल्य स्मृति बन जाती है।
यह धाम हमें सिखाता है कि स्त्री ही सृष्टि है, शक्ति ही आधार है, और माँ ही जीवन की धारा है।
कामाख्या शक्तिपीठ केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आत्मा का अनुभव है। यहाँ आकर समझ में आता है कि क्यों माँ को “आदिशक्ति” कहा जाता है।
जब आप नीलाचल पर चढ़ते हैं और माँ के चरणों में नतमस्तक होते हैं, तो यह अहसास होता है कि सारी दुनिया की शक्ति एक ही स्थान पर समाई हुई है। माँ कामाख्या केवल सुनती नहीं, बल्कि अपने भक्तों को बदल देती हैं।
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