ग्वालियर से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर, मुरैना की चंबल घाटियों में, एक ऐसा स्थान है जिसे देखकर लगता है मानो समय थम गया हो। चारों ओर फैली वीरानी, हवा में रहस्यमयी गूंज और ऊँचाई पर स्थित एक वृत्ताकार मंदिर — यही है चौंसठ योगिनी मंदिर।
कहा जाता है कि यह वही धाम है जहाँ धरती पर 64 देवियाँ उतरीं। यहाँ का हर पत्थर, हर दीवार और हर हवा का झोंका साधकों से कहता है — “यहाँ शक्ति अब भी जीवित है।”
64 योगिनियों का रहस्य
भारतीय परंपरा में योगिनियाँ केवल देवियाँ नहीं, बल्कि शक्ति की अदृश्य रूप हैं। इन्हें माँ काली की सहचरियाँ कहा गया है, जो ब्रह्मांड की ऊर्जाओं की संरक्षिका हैं।
हर योगिनी का एक अनोखा रूप है —
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कोई मातृत्व का आशीर्वाद देती है,
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कोई संहार का तेज समेटे हुए है,
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कोई करुणा की छाया है,
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तो कोई रक्षक का साहस।
मुरैना का यह मंदिर इन्हीं 64 योगिनियों को समर्पित है। वृत्ताकार आँगन में खड़े होकर जब कोई चारों ओर देखता है, तो ऐसा अनुभव होता है मानो अनगिनत अदृश्य आँखें उसे देख रही हों। यह अनुभव डराता नहीं, बल्कि आत्मा को शक्ति और भक्ति से भर देता है।
स्थापत्य की अद्भुतता और संसद भवन से संबंध
9वीं शताब्दी में बना यह मंदिर स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है। भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से है जो खुले आकाश के नीचे बनाए गए हैं।
पूरा मंदिर एक विशाल वृत्त की तरह है:
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चारों ओर 64 कक्ष हैं, जिनमें हर कक्ष में एक योगिनी की मूर्ति स्थापित थी।
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बीचोंबीच एक विशाल शिवलिंग है, जो इस सत्य का प्रतीक है कि शिव और शक्ति का मिलन ही सृष्टि का आधार है।
इतिहासकार मानते हैं कि दिल्ली का संसद भवन भी इसी मंदिर की संरचना से प्रेरित है। संसद भवन का गोलाकार स्वरूप और चारों ओर बने कक्ष — इसकी वास्तुकला कहीं-न-कहीं मुरैना के इस मंदिर से प्रेरणा पाते हैं।
इस तथ्य से यह मंदिर केवल भक्ति का केंद्र ही नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ा हुआ भी प्रतीत होता है।
साधना और तांत्रिक शक्ति
यह धाम प्राचीन काल से तांत्रिक साधना का केंद्र रहा है। कहा जाता है कि यहाँ साधना करने वाले साधक अद्भुत सिद्धियाँ प्राप्त करते थे।
स्थानीय कथाओं में उल्लेख है कि अमावस्या और पूर्णिमा की रातों में साधकों ने यहाँ अद्भुत अनुभव किए —
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किसी ने योगिनियों की छाया देखी,
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किसी ने मंत्रों की अनसुनी गूँज सुनी,
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किसी ने महसूस किया कि उनके चारों ओर अदृश्य शक्तियाँ मंडरा रही हैं।
आज भी बहुत से भक्त मानते हैं कि इस मंदिर की वायु में वही कंपन है, जो साधना को सीधे देवी तक पहुँचा देता है।
चंबल घाटियों का प्रभाव
चंबल घाटियों और बीहड़ों के बीच बसा यह मंदिर अपने वातावरण से और भी रहस्यमयी हो उठता है।
संध्या के समय जब सूर्यास्त की सुनहरी किरणें मंदिर की दीवारों को छूती हैं और चारों ओर सन्नाटा फैल जाता है, तो लगता है मानो समय थम गया हो। उस पल मंदिर का वातावरण अलौकिक हो जाता है। भक्त कहते हैं कि ऐसे क्षणों में योगिनियों की उपस्थिति और भी गहराई से महसूस होती है।
भक्तों के अनुभव
यहाँ आने वाले लोग केवल इतिहास या स्थापत्य देखने नहीं आते, बल्कि एक अनुभव लेकर लौटते हैं।
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कोई कहता है कि मंदिर के आँगन में बैठते ही मन बिल्कुल शांत हो गया।
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कोई बताता है कि उसने चारों ओर एक अनोखी ऊर्जा को अपने भीतर उतरते महसूस किया।
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कुछ तो यह भी कहते हैं कि “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते ही उनकी आत्मा भीतर तक शुद्ध हो गई।
एक स्थानीय पुजारी कहते हैं:
“योगिनियाँ अब भी यहाँ हैं। वे हर आने वाले को परखती हैं और सच्चे हृदय से माँगने वालों को माँ का आशीर्वाद देती हैं।”
एक साधक की आँखों से
कल्पना कीजिए — आप मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़कर वृत्ताकार आँगन में पहुँचते हैं। चारों ओर 64 कक्ष, हर कक्ष मानो अपनी कहानी कह रहा है। बीच में शिवलिंग और ऊपर फैला नीला आकाश।
आप आँखें बंद करते हैं, और धीरे-धीरे “ॐ नमः शिवाय” जपते हैं। उसी क्षण आपको लगता है कि आप अकेले नहीं हैं। चारों ओर योगिनियों की अदृश्य उपस्थिति है। हवा, आकाश और पत्थर — सब मिलकर माँ की शक्ति का स्पंदन करा रहे हैं।
यही है चौंसठ योगिनी मंदिर का सबसे बड़ा चमत्कार — यह आपको आपके भीतर छिपी शक्ति से जोड़ देता है।
चौंसठ योगिनी मंदिर केवल एक पुरातन धरोहर नहीं है। यह वह स्थान है जहाँ भक्ति, साधना और रहस्य एक साथ मिलते हैं।
मुरैना की चंबल घाटियों में बसा यह धाम हमें यह सिखाता है कि शक्ति केवल पूजी नहीं जाती, बल्कि अनुभव की जाती है। और जब कोई यहाँ आता है, तो उसके जीवन में एक नया विश्वास जागता है — कि देवियाँ आज भी धरती पर उतरी हुई हैं और वे हर भक्त की रक्षा करती हैं।
यह मंदिर न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति और लोकतंत्र के इतिहास से भी जुड़ा हुआ है।
जब आप यहाँ खड़े होकर आकाश की ओर देखते हैं, तो मन से बस यही निकलता है —
“हे माँ योगिनियों, अपनी शक्ति और कृपा से हम सबका मार्गदर्शन करो।”
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